
Kashmir Terror Attack: जम्मू कश्मीर के पुलिसकर्मी इफ्तिखार अली को हाईकोर्ट के फैसले से बड़ी राहत मिल गई है. अली को उनके 8 भाई बहनों के साथ पाकिस्तान भेजा जाना था, जिसके खिलाफ उन्होंने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.
मैं जम्मू कश्मीर पुलिस में काम करने के लिए ही पैदा हुआ हूं और भारत ही मेरा देश है. ये कहना है 45 वर्षीय पुलिसकर्मी इफ्तिखार अली का. कुछ ही दिनों पहले उनको और उनके आठ भाई-बहनों को पाकिस्तान भेजा जाना था, लेकिन उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण ये फैसला टल गया. पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास मेंढर उप-मंडल से ताल्लुक रखने वाले अली के लिए वर्दी नौकरी से कहीं बढ़कर है. उन्होंने अपना लगभग आधा जीवन पुलिस में बिताया है. इफ्तिखार अली जम्मू पुलिस की कई शाखाओं में अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
इफ्तिखार अली ने की पीएम मोदी और अमित शाह की तारीफ
इफ्तिखार अली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तारीफ करते हुए कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि देश का नेतृत्व उन्हें शत्रु राष्ट्र को केवल इस आधार पर नहीं सौंपने देगा कि वे जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से से ताल्लुक रखते हैं जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है.
इफ्तिखार अली के परिवार के 9 सदस्य उन दो दर्जन से अधिक लोगों में शामिल थे, जिनमें से अधिकतर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से थे, जिन्हें पुंछ, राजौरी और जम्मू जिलों के अधिकारियों ने भारत छोड़ो नोटिस दिए थे. मंगलवार और बुधवार को उन्हें पाकिस्तान वापस भेजने के लिए पंजाब ले जाया गया था.
हाईकोर्ट के फैसले से मिली बड़ी राहत
इफ्तिखार अली और उनके 8 भाई-बहनों मोहम्मद शफीक (60), नशरून अख्तर (56), अकसीर अख्तर (54), मोहम्मद शकूर (52), नसीम अख्तर (50), जुल्फकार अली (49), कोसर परवीन (47) और शाजिया तबस्सुम (42) को पुंछ में उनके गांव वापस लाया गया. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें दावा किया गया था कि वे पाकिस्तानी नागरिक नहीं हैं और पीढ़ियों से सलवाह गांव में रह रहे हैं और उनके निर्वासन पर रोक लगा दी गई.
‘सलवाह निवासी होने का हमारा सदियों पुराना इतिहास’
उन्होंने बताया कि सलवाह के वास्तविक निवासी होने का हमारा सदियों पुराना इतिहास है. हमारे माता-पिता और अन्य पूर्वजों को गांव में दफनाया गया था. 26 अप्रैल को पुंछ के डिप्टी कमिश्नर की तरफ से जारी किया गया नोटिस हमारे परिवार के लिए एक झटका था, जिसमें 200 से अधिक सदस्य शामिल हैं, जिनमें से कुछ सेना में सेवारत हैं.
अली अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं, जिनकी उम्र छह से 11 साल के बीच है. उन्होंने कहा कि इस स्थिति के बीच उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया और उन्हें राहत देने के लिए न्यायपालिका के आभारी हैं.
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